ज़िंदगी के सफ़र में यक से, अजनबी टकराते हैं
धीरे-धीरे दिल के क़रीब आ, अज़ीज़ बन जाते हैं।
बातों-मुलाक़ातों से शुरू, सारी दुनिया हो जाते है
हर ख़ुशी-ग़म में, उसे यूँही सब राबता कराते हैं।
अज़ीज़ इतना कि उसके सिवा वजूद मंज़ूर नहीं
उसे भी दुनिया में कोई और शख़्स क़बूल नहीं।
अचानक वक़्त अपना कड़वा खेल, खेल जाता है
मामला कुछ नहीं और वो बीच रास्ता छोड़ जाता है।
इंसान है, सो खोना-पाना, मिलना-बिछड़ना क़बूल करता है
दर्द दिल में लिए, इसे ही क़ुदरत का उसूल मान लेता है।

कुदरत के नियम की अच्छी व्याख्या की हैं
LikeLiked by 1 person
हार्दिक आभार 😊
LikeLike
Nice one
LikeLike
Thanks a lot 😊
LikeLike
Umda rachna.
LikeLiked by 1 person
हार्दिक आभार 🙏
LikeLiked by 1 person