जब दोस्त

जब दोस्त को सिर्फ दोष दिखने लगे
समझो दोस्ती का सूरज अस्त होने लगा है।

जब दोस्त आरोप,रोपित करने लगे
समझो दोस्ती का पौधा अब सूखने लगा है।
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जब दोस्त समझदारी की आशा करने लगे
समझो औपचारिकता का सोपान आने लगा है।

जब दोस्त दूसरे दोस्तों से तुलना करने लगे
समझो दोस्ती की रंगोली से और आँगन सजने लगा है।
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जब दोस्त दिल की जगह दिमाग में छाने लगे
समझो दोस्ती अब राहत नहीं, अनचाहा बोझा लगने लगा है।

जब दोस्त के हर नजरअंदाज को समझने लगे
समझो दोस्ती के जहाज में आखिरी कील लगने लगी है।

जब दोस्ती में ऐसी कोई भी,गलतफहमी दिखने लगे 

समझो दोस्ती को फिर से धूप पानी लगाने की मुद्दत आने लगी है।
अपर्णा शर्मा
Nov. 21st,25

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