कठपुतली

आज नाच दिखाती कठपुतली मुझसे यूँ कह रही थी
ठुमक ठुमक कर नाचती और वो गीत गा रही थी।

धागों के इशारों पर वो भाव भंगिमा बना रही थी
कभी आगे, कभी पीछे, वो इशारों पर थिरक रही थी
थिरकते हुए कठपुतली मुझसे यूँ कह रही थी
जिंदगी के धागे,किसी को न सौप,ऐसा कह रही थी।

आज नाच दिखाती कठपुतली मुझसे यूँ कह रही थी
ठुमक ठुमक कर नाचती और वो गीत गा रही थी।
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अपने धागे खुद समेट, न फंस किसी के चक्र में
ये केवल अबोध से धागे नहीं, तार है आत्मा के
नचाने वाला जब समेट लेता है इन धागों को
टूट कर मृत समान, निर्जीव हो जाती हूँ, कह रही थी
आत्मा का धागा टूटने से जीवन निष्क्रिय, ऐसा कह रही थी।

आज नाच दिखाती कठपुतली मुझसे यूँ कह रही थी
ठुमक ठुमक कर नाचती और वो गीत गा रही थी।
अपर्णा शर्मा
Nov. 7th,25

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