श्रेष्ठ विद्वान था एक ब्राह्मण
ब्रह्मपौत्र और कुल यशस्वी गण
चूहूँ ओर फैला था उसका मान
नाम था उसका अभिमानी रावण।
कहता था अट्ठाहास लगा वो
हाँ! मैं लंकेश, मैं हूँ रावण।
जिसके महल में हवा का पहरा
कुबेर भी जबरन था वहां ठहरा
शनि ग्रह जिसकी करे चाकरी
रावण था वो बहुत ही अहंकारी।
कहता था अट्ठाहास लगा वो
हाँ! मैं लंकेश, मैं हूँ रावण।
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श्रेष्ठो में श्रेष्ठ,था भ्रात प्रेम में
काल बुलाया था बहिन प्रेम में
दांव लगा के अपने पूरे कुल का
भयभीत नहीं था वो पतन से।
कहता था अट्ठाहास लगा वो
हाँ! मैं लंकेश, मैं हूँ रावण।
महान तपस्वी और बड़ा ही गर्वीला
शिव को संग ले चला,ऐसा हठीला
जानता था वो सब राम की लीला
रामबाण पर तज दी अपनी लीला।
कहता था अट्ठाहास लगा वो
हाँ! मैं लंकेश, मैं हूँ रावण।
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शिव का भक्त और राम हुए जिसके हंता
जो था तपस्वी, वीर और प्रजापति लंका
शेष नहीं था ,अब उसकी माया का डंका
राम है ईश,ना थी अब उसके मन में शंका।
जो कहता था, अट्ठाहास लगा
हाँ, मैं लंकेश, मैं हूँ रावण।
अपर्णा शर्मा Oct. 2nd,25

Bahot achha likha hai 👌🏻👏🏻👍🏻
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😊❤️
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