वक़्त ठिठका सा रहता है।

पुरुष के जीवन में जब दुर्घटना घट जाती है
तब उसकी जीवन नैया डगमगा सी जाती है।
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ठहरे वक़्त में भी कभी आस ना छूट पाती है
सभी के सहयोग से नई डगर दिख जाती है।

पर स्त्री होना आसान नहीं,वक़्त कहाँ चलता है
जीवन के हर दौर में वक़्त ठिठका सा ही रहता है।
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चुप सा वक़्त हर पल जीवन का लक्ष्य बदलता है
वो बदलती खुद को पर वक़्त ठहरा सा होता है।
अपर्णा शर्मा
April18th,25

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