छुपाए है एहसास

छुपाए है एहसास कि नहीं,समझती है दुनिया।
दिखाए जो जज़्बात तो भी,हँसती है दुनिया।

छुपाए है जज़्बात, यूँ खिलखिला कर
छुप गई पर्दों में, खुद ही,शरमा कर
हर हाल में कहानियाँ,गढ़ती है दुनिया
छुपाए है एहसास कि नहीं,समझती है दुनिया।

लहरों में नाचती सी वो,हलके से  मुस्कुराई
ओढ़ मुहब्बत का दामन, खुद में सिमट आई
हाल -ए-दिल में उसके कहाँ,उलझती है दुनिया
छुपाए है एहसास कि नहीं,समझती है दुनिया ।
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सुर्ख चेहरे ने मुहब्बत की,बयां की चुगली
छिपा के नज़रे गेसूओं से,अपनी,चाहत ढकली
हो जाए गर शक तो तफ़तीश, करती है दुनिया
छुपाए है एहसास कि नहीं,समझती है दुनिया।

आसां नहीं दौर-ए-नफरत में, इज़हार करना
छिपाने के अंदाज़ को,अदा में बदलना
अदाओं पे भी तो ताना,कसती है दुनिया।
छुपाए है एहसास कि नहीं, समझती है दुनिया।
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वक़्त की रवानगी में, छिप गए एहसास
फर्ज़ की ज़मी पे, वो,चुप सी उदास
कब्र पर फूल रखे कि, रिवाज कहती है दुनिया।
छुपाए है एहसास कि नहीं, समझती है दुनिया
अपर्णा शर्मा
Feb. 28th,25

2 thoughts on “छुपाए है एहसास

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