सार साल का

बरसो से, साल दर साल जहाज में सवार होते रहे
न जाने कितने ही, वादों के जहाजो को उड़ाते रहे।

कई दफा ये, कागज़ी वादों के जहाज, फटते रहे
कई दफा ये जहाज,वादे समेत धूल फांकते रहे।
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कभी-कभी अपने को, वादों का सरताज मानते हुए
सावधानी से जान को कुर्बान होने से बचाते रहे।

हवाई किले के साथ-साथ, जहाज भी  हवा हवाई उड़ाए
हकीकत से परे,फ़साना सच तक के सपने फिर देख आए।
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बचे साल के कुछ दिनों में साल का नफा नुकसान माप कर
फिर, नए साल के जहाज को फिर नए वादों से सजा रहे।
अपर्णा शर्मा
Dec.27th,24

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