बेशक

सुबह तुम्हें याद कर शुरु होता जिसका दिन
बेशक मुझे आज भी चाहत है तुमसे.

इबादत में रोज ही माँगती तुम्हारी ख़ैर
बेशक मुझे आज भी चाहत है तुमसे.
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खूबसूरती में चाँद सी चमक की चाहत
बेशक मुझे आज भी चाहत है तुमसे.

नेकीयों की अर्जियों में चाही तुम्हारी नेकी
बेशक मुझे आज भी चाहत है तुमसे.
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सांसो के इस तराने में बजे तुम्हारी सरगम
बेशक मुझे आज भी चाहत है तुमसे.

वज़ूद खोया-खोया दिखे मुझे तुम्हारे बिन
बेशक मुझे आज भी चाहत है तुमसे.
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मैं तो अपनी जानूँ, तुम्हारा तुम जानों
बेशक मुझे आज भी चाहत है तुमसे.
अपर्णा शर्मा
Nov.22nd,24

2 thoughts on “बेशक

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