बोलती हैं निगाहें

झिलमिलाते सपनें
उठती चाह की लहरे
बजती शहनाईयां
और संगीत के तराने।
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नाचते तुम हम
कैसे देखूँ इन्हें
सुनूँ कैसे बतकही
समझे सभी अनकहे।
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नहीं जानती तरकीबे
और ना ही तौर तरीके
बस अपने को समेटते
ये बोलती है निगाहें।
अपर्णा शर्मा
July 9th,24

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