माँ*

जब जब तीव्र होता बालक का दर्द
तड़पती माँ और चेहरा हो जाता जर्द
ढाढस दे फ़र्द अपने को बढ़ाती हौसले को
बेबस है लाचार नहीं, झाड़ती जिंदगी के हर गर्द।
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माँ और बालक का होता निराला ही संसार
जहाँ हर वक़्त होता प्रेम का अद्भुत संचार
इक दूजे के सपनों के,माँ बालक होते पूरक
मिलता जहाँ बालक के जीवन को आकार।

लेकिन जब कभी बालक तकलीफ़ में आता
माँ का रोम रोम बालक के लिए हर पल रोता
अचूक दवा, अचूक इलाज का करती वो प्रयास
सब तकलीफें उसकी हो, मन हुमायूं सा होता।
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हर मर्ज की दवा माँ के पोरों में  रहती
माना, कभी-कभी वह बेहद बेबस भी होती
हर दुविधा का हल वो भरसक खोजे
बेबस है माँ,पर कभी कमजोर ना होती।
अपर्णा शर्मा
May 12th,24

Mother’s day

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