पलाश

पहाड़ों के आगोश में
दिलों के दबे अरमान से.
जब खिलते हैं पलाश
मचलती है फिर तलाश।
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जो बिछुड़ गया पत्र सा
पतझड़ के वियोग सा
खिला गया फिर बसंत
आ गया फिर सैलाब सा।

शंख सा शुभ आकार लिए
वनों में,दिलों में आग लिए
नदी सी निरव जिंदगी में
फिर वहीं अरमान सुलग गए।
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तेरे आगमन के अनंत होते इंतजार में
एक पुष्प और जुड़ा उस तेरे पुष्प हार में
जिस बरस ना खिलेगा जब ये पलाश
आखिरी बरस होगा शायद तेरे इंतजार में।
अपर्णा शर्मा
May 3rd,24

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