मेरी परछाई

सूरज के चढ़ते ही वो
मेरे संग संग हो लेती है
जहाँ-जहाँ मैं चलूँ वो
मेरे आगे पीछे ही रहती है.
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मेरे हर एक काम में वो
रखती साझेदारी है
साथ छूटे, चाहे सबका
वो रखती वफ़ादारी है.

मेरे अक्स में नानी,माँ सी
वो अक्सर मिल जाती है
और कभी मेरे प्यारे नन्हों में
मुझको झांसा दे जाती है.
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पर ये केवल प्यार अनुराग की
रोशनी में ही जीवित रहती है
घृणा, द्वेष के घोर अंधियारे में
परछाई न जीवित रहती है.
स्वरचित :
अपर्णा शर्मा  April 12th,24

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