मैं सेमल (वासंतिक पुष्प)

हे मानव!
जन्म होते ही जिसने तुझे थाम लिया
दादी,नानी के दुलार ने मुझे तकिया बना दिया
वो रुई मैं ही रहा, मैं सेमल।

सड़क किनारे, जंगलो में
तुम्हारे आसपास खड़ा रहा
मेरी नुकीली पत्तियों को जब तब
तू निरर्थक समझता रहा
कंटीले तने, डाली सब ,वैद्य मैं ही हूँ
मैं सेमल।
https://ae-pal.com/
विद्यालय के मैदान में, जब कभी मेरे  बीज़ उड़ कर तुम्हें देखने आए
तुम और तुम्हारे दोस्तों को मानो
मुझे फूँक मारने के निराले खेल
आजमाये.
तुम्हारे बचपन की यादों में एक मैं भी हूँ।
मैं सेमल।

यौवन समय में तुम मुझसे ही सीखे अपने विछोह को सहना.
विरह में तप कर अग्नि रूपी फ़ूलों से अपनी काया सजाना.
पतझड़ में प्रिय पत्रों का विछोह तुम्हें भी उतार चढ़ाव सिखा गए, वो मैं हूँ।
मैं सेमल।
https://ae-pal.com/
सिखाता रहा सदा प्रेम में विरह और उसका सुंदर परिणाम.
मेरा पुष्प तभी बन पाया अतुलनीय गुणों की खान।
देखने में धधकता सूरज स्पर्श मानो रेशम, वो मैं ही हूँ।
मैं सेमल।

ग़र तुम जीना चाहते हो सुंदर  जीवन को
समझ लेना मेरे जीवन की गहराई को
माना उपेक्षित सा वृक्ष हूँ पर भरा हूँ अच्छाइयों से, ये मैं ही हूँ।
मैं सेमल।
अपर्णा शर्मा  April 5th,24

2 thoughts on “मैं सेमल (वासंतिक पुष्प)

Add yours

  1. बहुत सुंदर तरह से सेमल के हर रूप की व्याख्या और मन की दशा की समरूपता……इस ही तरह लिखती रही और तुम भी सेमल की तरह निखरती रहो 👏

    Liked by 1 person

Leave a comment

Blog at WordPress.com.

Up ↑