खाली हाथ*

जीवन में एक से बढ़कर एक मिलता रहा
उनके बिना जीना नामुमकिन सा लगता रहा.

जीवन में रच बस कर ,जीवन का सुकून से लगे
सोचता,कुछ ना छूटे,सब यूहीं मिलता रहे.
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हर वस्तु,मित्र,रिश्ते और शहर भी रूह से जुड़े रहे
इनके बिना जीना भी क्या जीना सा लगता रहे.

छूट गए सब, समय के साथ साथ और खाली हाथ रह गए
शायद इसको कहते हैं कि हम हाथ मलते रह गए।
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अब सुबह शाम की दवा बताए,कि तेरे बिना भी क्या जीना
यहीं है जीवन के भंवर में,सांसो की नाव को भरसक खेना।
अपर्णा शर्मा
March29th,24

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