नारी है वो

घर का दमकता सूरज नहीं,झिलमिलाती रोशनी है घर की
चिड़ियों की चहचहाट तो नहीं ,रंग बिखेरती तितली है वो।

मौसम,बेमौसम उमड़ते-घुमड़ते है बादल, गगन में
पर रिमझिम फुहार सी, हर वक़्त,बरसती है वो।
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हर खुशी को चार चांद लगाती, अपनी खिलखिलाहट से
कभी निराश मन को, नकली मुस्कान से, समझाती है वो।

अपनी लटों को संवार ,हर समाधान खोजना
और झटक कर ,कठोर निर्णय भी लेती है वो।
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छोटी से छोटी बात और काम पर, निर्भरता उसी पर
अधिकतर बड़ी बातों में, देनदारी सिफर रखती है वो।

हर दिन अपने प्रियजनों पर,अपने को करती समर्पित
प्रतिवर्ष ‘स्त्री दिवस’ पर, स्व मूल्यांकन करती है वो।
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शिव की साधना में, जैसे शक्ति का है समावेश
ऐसे ,हर उम्र में ,खुशबु सी, महकती है वो।

जिंदगी के हर चरण को, उत्सव सा मनाती
फिर भी रीतेपन को ढोए, ऐसी नारी है वो।
अपर्णा शर्मा
March8th,24

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