अभिमान


पाँच तत्व से बना शरीर
बचपन से सुनता आया रे.
मिट्टी,अग्नि,जल,आकाश
वायु ने मिलकर बनाया रे.

ये तन माटी का पुतला तू
इस पर खूब इतराया रे.
दर्प की वायु भरली इतना
इसका घमंड ना उतरा रे.
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मैं की अग्नि में तूने
शरीर खूब ही तपाया रे.
मानवता को भस्म किया
अमानवता से जोड़ा नाता रे.

जल की शीतलता से तूने
तोड़ा क्यूँ नाता रे.
कठोरता के आंगन में तूने
अलग संसार बसाया रे.
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फूटा जब माटी का तन
जल में जल समाया रे.
दर्प वायु का ऐसा टूटा
अग्नि में तुझे जलाया रे.

सुन्दर, सद्कर्मों का नाता
बस आकाश में जाता रे.
इसी चक्र में घूमता मानव
जीवन यही बताता रे.
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सद्कर्मों को करके तू आत्मा से बन्ध जा रे.
आत्मा ही जायेगी वहाँ
मात्र सद्कर्मों की कीमत रे.
अपर्णा शर्मा
Jan.26th,24

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