पहली दस्तक



हमदम,हरदिल,अजीज सूरज सा
गहराता जीवन में घुलता रात्री सा
चाँद की चाँदनी सा हुआ अलंकृत
स्वार्थ से परे अनवरत ऐसा एक रिश्ता।

मौसम का ना होता कोई असर
ऋतु से अनजान सबसे बेख़बर
हर पल का साथ जैसे खिले बसंत
एक दूजे के सदा ही बनते रहबर।
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किसी एक की यक सी अनुपस्थिति
समझ न आती दूजे को ये परिस्थिति
आवारा बादल यहाँ वहाँ विचरता
खुद से बदली बदली लगे अपनी ही मनःस्थिति।

यह विछोह अंतर्मन को झकझोरे
देख सखा को हृदय में उठे हिलोरे
तन मन में शीतलता का ज्वार उठा
जैसे शांत से समंदर में लहरों की मौजे।
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शुक्र है जो जीवन में विरह आता
इंतजार ही इश्क की पहचान कराता
जब एक एक पल सदी सा दीर्घ हो जाए
उसी क्षण, पहली दस्तक इश्क दे जाता।
अपर्णा शर्मा
August 25th, 23

2 thoughts on “पहली दस्तक

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