इतनी शर्मनाक घटना की कलम भी मौन है
शुतुरमुर्ग से गर्दन छिपाए सोचते हम कौन है?
मानव क्या? जानवर तक कहलाने के लायक नहीं
कभी अस्मिता लूटते और मूत्रविसर्जन करते कहीं ।
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किस मुँह से कहें आज, यहाँ हर नारी में माँ है बसती
हर छह माह के बाद,देश में कन्या देवी सी है पूजती।
बेटी होने पर,आशंकित बाप,क्या जश्न मनाएगा ?
और हुआ निर्बल तो हर हाल में कुचला जाएगा।
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शिक्षा ही मात्र हथियार हैं जो सम्मान सिखाती है
एक समान की सोच ही,हर घर मानवता लाती है।
दिल उदास है और नस नस में रोष ही रोष भरा है
ऐसी कुत्सित मानसिकता पर देश शर्म से गड़ा है।
अपर्णा शर्मा
July 21st, 23

मन की टीस को अभिव्यक्ति करती रचना।
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