पिता

अंगुली पकड़ कर मेरी,
उन्होने दुनिया थमा दी
अपनी आँखों से उन्होने
सारी दुनिया दिखा दी।

लड़खड़ाते पैरों को
संभलना सिखाया
ख़्वाबों को मंजिल का
रास्ता सुझाया।
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काँधे पर बैठा मेला
ठेला खूब घुमाया
यूँ ही नाम और मान
से परिचय कराया।

मन की कुलबुलाहट को
पहचान जाते है
हर परेशानी का वहीं
समाधान होते है।

ख़्वाबों को हकीक़त में
बदल देते है
हर खुशी गम में हरवक़्त
साथ देते है।
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वो जलते है,तपते है,
सूरज से
मेरे लिए सुकून है,छाया
है, वृक्ष से।

छोड़ दिया मुझे, दुनिया
दारी सीखा कर
वज़ूद पा सकूँ,जी सकूँ
मुस्कुरा कर।
अपर्णा शर्मा
June 18th, 23
(विश्व पितृ दिवस पर विशेष)

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