ख़त



आज,अलमारी जब साफ़ करने लगी
कोने में छुपी संदूकची,मुझे बुलाने लगी।

ठिठकी सी मैं भी,लालच में उसे तक रही
लालच दिखा,वो मुझ पर जोर से हंस रही।
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झट से संदूकची खींची,खोल कर यादें समेट ली
नज़रे बचा,चुपके से खतों की मैंने कोली भर ली।

संदेशों से भरे पत्र आज भी करीब कर देते हैं रिश्ते
ख़त में सहेजे भाव,जैसे एहसास ए समन्दर की लहरे।

कुछ घर के,मित्रों के,नौकरी का नियुक्ति पत्र भी इस ख़ज़ाने में
हर बार,अलग संदेश होता है प्रिय के दो पंक्ति के पत्र में।
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पीले कार्ड,अंतर्देशीय,कुछ लंबे से पत्र मित्रों के
जिनमे,जिक्र हैं काम के और कुछ लफ्फाजी के।

ख़त ले गए आज,बीते समय के हल्के फुल्के से दिनों में
चेहरे पर छा गया नूर,छिप गया था, जो कुछ दिनों से।
स्वरचित:
अपर्णा शर्मा
June 9th, 23

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