इश्क मुखर हो गया



कोई दिल को भा गया
रोम-रोम में समा गया ।
नज़रे बोलती रही
लबों पर मौन छा गया ।

ख़त जब उसे लिखा
बस नाम ही था लिखा ।
भावनायें बोल रही
शब्द मौन हो गया ।

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आचरण सब बदल गया
व्यवहार कुशल हो गया ।
सब हैरां से देख रहे
चापल्य मौन हो गया ।

समय ठहर सा गया
ख़्याल ने ख़्याल जिया ।
चित्त हर्षित हो रहा
इश्क मुखर हो गया । अपर्णा शर्मा

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