उम्र

उम्र क्यों बिला वज़ह मजबूर कर रही

ज़िंदगी सदा से जीने की वज़ह दे रही।

उम्र जब देखो पाबंदी की बात करती है

ज़िंदगी वहीं पुरजोश जीना सिखाती है।

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यूँ न समझ, ए उम्र! के रुकावटें न थी रास्ते में

फिक्र को, तमाम कर गई ज़िंदगी अपनी हस्ती में।

जब अपना अक्स देखती है उम्र आईने में

उम्र शरमा जाती है, ज़िंदगी के मुस्कराने पे।

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