आसमाँ वसुधा हेतु, उद्यत देने को उपहार
सम्पूर्ण धवल पक्ष में, ले पाया यह आकार
साँझ होते ही धरा को थमा दिया चांदनी में लपेट
आसमाँ का धरा को अनुपम रंगोली का उपहार.
तारों संग विधु खेल रहा, धवल रंगोली धरती पर
श्याम रंग की चूनर ओढ़, रजनी भी मचले धरती पर
धरती का हर प्रेमी चाँद में ,अपने प्रेम को निरख रहा
न्यौछावर हुआ चंदा भी,सजीली धरती के अनुराग पर .
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धरती भी चंदा के अभिवादन को, आतुर हो रही
पूर्ण चाँद के स्वागत में सुरभित से परिपूर्ण हो रही
रात रानी, कुमुदिनी,चांदनी शतमुख से खिल गये
आसमाँ को, निरंतर इस रंगोली का धन्यवाद दे रही.
समंदर भी चाँद के अभिनंदन में पीछे कब रहा ?
हर तरंग, चांद के स्पर्श को निरंतर प्रयासरत रहा
प्रेम में डूबा समंदर,ज्वार में संदीपित सा
पूर्ण चाँद,धरती,और समंदर दुर्लभ दृश्य दिखा रहा.
अपर्णा शर्मा
Oct.17th,25

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