तृष्णा

तृष्णा ऐसी प्यारी थी
आज पर हुई भारी थी
हिमालय सब देख रहा
मानवता आज हारी थी।

प्रदूषण फैला चारों ओर
कंक्रीट का जंगल घनघोर
पतली सी धारा नदियों की
पर्यटक करते विकट शोर।
https://ae-pal.com/
यक से मौसम ऐसे बदला
मानव पल भर में ठिठका
काल उगलती नदिया देखी
उत्थान को यूँ मिटते देखा।
https://ae-pal.com/
पर्वतों में अब बादल फट रहे
मैदान ताल तलैइया बन रहे
अब तो कुछ समझ बढ़ाओ 
हम अपनी ही हानि कर रहे।
स्वरचित:
अपर्णा शर्मा
Sept. 5th,25

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