होली आई रे

घर-घर सजी,रंग रंगोली
हवा में,मादकता,छाई रे।
टेसु,गेंदा से भरी गागरी
मतवाली,होली आई रे

धीमे-धीमे,आया फागुन
होली ने,हल्ला बोला रे
रंग गए सबके,तन और मन
होली,सब की,हो ली रे।
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मुक्त मन से,खेली,जब होली
बंधन की बातें, बीती रे
इक दूजे के,रंग में रंग कर
सब पर,यौवनता छाई रे।

एक बावरा मन,खड़ा उदास
अंखियाँ तकती,देहरी रे
अंजुरी भर कर,लिया गुलाल
खुद ही,खुद को,रंगती रे।
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रंग बरसाते,हुर्रियारों की छाई
नगर,गांव में,मस्ती रे
बाट देखते, कहीं उजड़ गई
किसी की,अपनी हस्ती रे।
अपर्णा शर्मा
March14th,25

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