गर पंख होते!

प्रातः काल के काम काज को समेट.
फुर्सत में क्यूँ कर हम फोन लगाते?
पंख लगा,फुर्र होते,ना करवाते वेट.
मिलते उनसे जो वर्षों राह है तकतें.
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पंख लगा मिल आती उस बूढ़ी माँ से.
दिनभर बतकही चलती न जाने किस से .
सूना घर,सूना मन,नैन प्रतीक्षा को तरसे.
मिलवा देती उसके प्यारे बिठा उसे पंखों पे.

भोजन,कंबल,कपड़ा देती रात अंधेरे.
जिनके घर बने ये रात के सोए रास्ते
वो भी जीते शायद कुछ पल सुकून से
पंख होते, देखती कौन दुख में सोया रे.
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पंख होते तो क्या-क्या कर देते.
मिलते रोज-रोज अपने प्रिये से.
दूर करते सबके शिकवे, मन से. 
शायद,फिर वो करते तौबा हमसे.
अपर्णा शर्मा
Feb.7th,25

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