तस्वीर

होश संभालते ही, कुछ तस्वीरें बनी जेहन में
जिनमें रचा,पहाड़,झरने और चिड़िया बना मैं
थोड़ी सी ज़मी, जहाँ बैठ कर मैं रास्ते देख लूँ
थोड़ा सा आसमाँ,कि अपनी मंजिल ढूँढ लूँ।
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आसान सी सफर-ए-तस्वीर रखी दिल में
कठिन रही डगर-ए-तकदीर असल में
लगातार मंजिल को उठते रहे कदम
घुमावदार रास्ते थकाते रहे कदम दर कदम।
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आसमाँ की ऊँचाई पर,मंजिल कर रही इंतजार
झुका और,चल दिया खड़ी सीधी चढ़ाई पर
बस यहीं एक रास्ता लगा,जिंदगी के सफर का
सोचा मिली ग़र मंजिल,छू लूँगा दामन आसमाँ का।
अपर्णा शर्मा
Oct.11th,24

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