प्रेम, प्रीत में ऐसी डूबी
समय चक्र को थी भूली
प्रीति की अचल इच्छा में
जीवन की राह थी बदली।
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प्रेम की अमिट छाप लिए
विरह वेदना मन में लिए
विरह में यादों की बरसातें
प्रिय का हर क्षण ख़्याल लिए।
विरह से और गहराता प्रेम
चहुँ ओर छाया रहता प्रेम
भरमाया सा खोया सा मन
प्रतीक्षा में अब बढ़ता प्रेम।
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विरह आंगन बैठी,राह तके
प्रेम की बाती रोज ही जले
पूर्ण प्रेम की प्रतीक्षा में ही
राधा, उर्मिला सी दशा सहे।
अपर्णा शर्मा
Sept.27th,24

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