खुशियाँ दिहाड़ी पर


ढेरों रोशनी छुपाए, पर टिमटिमाते हुए
शरमाते हुए, बैठ गई, सकुचाते हुए
बैठते ही,चहुँ ओर चमक दमक फैल गई
सजा दिया गया, स्थाई आसन उसके लिए।
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खबर उसके आगमन की, दूर-दूर तक थी
ढोलक की थाप और बधाई गाई जा रही थी
मिठाइयों संग, मेहमानों का लग रहा था मेला
उसके आगमन पर महफिल सज रही थी।
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सपने का साकार रूप, आँखें देख रही थी
सत्कार पा कर भी ,वो अपनी मजूरी पर अड़ी थी
खुशियाँ आई थी,मगर आई थी, वो दिहाड़ी पर
सुखद याद दे, खुशियाँ,अपनों से दूर जा रही थी।
अपर्णा शर्मा
Aug.9th,24

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