निगाहें बोलती हैं


जो सभी अनकही को जुबां दे जाती है
वो सारी बतकही निगाहों से हो जाती है।

ये नहीं कि सिर्फ मोहब्बत का इजहार करती हैं
खामोशी से हर बात से साफ़  इंकार करती हैं।
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ग़मों का सैलाब जो दिल में बाँध कर रखा था
ये पनीली निगाहें सारे दर्द को बयां करती हैं।

मेरी और उसकी और न किसकी किसकी कहे
ये बोलती निगाहें सभी की चुगली खूब करती हैं।
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यारों की महफ़िलों में जब हँसी मज़ाक सजते हैं
वहीं दो निगाहें चार हो कर नई दुनिया बसती है।

मैं जी रहा झंझटों में, वो भी कुछ झमेलों में फंसा है
जब मुस्कुराए,ये निगाहें तो जिंदगी आसान होती है।
अपर्णा शर्मा
July 19th,24

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