होली

सेव,मठरी,गुजिया और दही बड़े
हथियार थे पिचकारी और गुब्बारे।
कच्ची उम्र में दोस्ती के रंग थे पक्कम पक्के
रंगबिरंगे रंगों से उड़ाते थे हम सभी के छक्के।
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शीतल ठंडाई पी पी होली आती थी अपने रंग में
कांजी होली को खूब नचाती थी फिर अपने संग में।
अब ना बनते वैसे प्यार भरे भंग के कुल्हड़
दूर कहीं सो गए सब, अपनेपन के सारे हो-हुल्लड़।
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अब भी रंगों की कमी कहीं नहीं दिखती
पर बचपन की टोली दिल में बहुत कसकती।
मात्र रिवाज निभाना ही रह गए अब त्योहार
दूर से दो बधाई और संजो लो,यादों का संसार।
अपर्णा शर्मा
March25th,24

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