माघ की सुबह की कहानियाँ
फाग की रात का गीत बन रही.
और गांव की कहानी कहती
नारियां फाग के गीत गा रही।
धरा हर ओर छोर से, गुलाल सी
पुष्प,पत्रों में महक रही
मंडराते भौरों और तितलियों संग
कोयल भी बागों में कुहूक रही.
शीत से सिकुड़ी वसुधा अब
अंगड़ाई ले, पलकें यूँ खोल रही
माघ की सुबह की कहानियाँ
फाग की रात का गीत बन रही।
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पौष,माघ में ठिठुरते सभी जीव
प्रेम गीत अब गा रहे
गुलमोहर,पलाश प्रेम के
पाश में बंध आग से दहक रहे
प्रेम का आँगन बनी नवेली वसुधा
त्योहारों की रंगोली सजा रही
माघ की सुबह की कहानियाँ
फाग की रात का गीत बन रही।
गेहूँ की बालियां सरसों संग
खेत में नृत्य कर रही
हिमालय की हिमा भी सब देख
मंद-मंद पिघल रही.
आम की बौराई भी फाग को
और बौरा रही
माघ की सुबह की कहानियाँ
फाग की रात का गीत बन रही
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प्रकृति का नया उल्लास,
नए जीवन का रंग भर रहा
अनुराग मधु से भरी धरा को
मधुर सुरभित कर रहा
वर्ष का अंत इस तरह फाग
के रंगों में घुल रहा.
अनंत वर्णों से सजा पूर्णिमा को
फाग विदा ले रहा।
अपर्णा शर्मा
March 22nd,24

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