पतझड़

स्वागत नव कोपलों का
मौसम पुष्प पल्लवों का
शुष्क हवाओ में झूमते
मदमस्त झोंका बयार का।
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शीत तरंगो में झूमते लहरते
मौन ठाने, माघ को ताकतें
अधीर इंतजार बहार का
विदाई प्राणप्रिय पत्रों की झेलते।

विजय होकर प्रचंड शीत से
गर्वित हो,गाते गीत प्रीत के
अल्हड़ गोधूम मौज में झूमता
ढलती शिशिर के प्रकोप से।

ऋतु बसंत,राजा कहलाता ऋतुओं में
मधुरस में मतवाला माघ फागुन झूमे बेसुधी में
टेसु,गेंदा,गुलाब गुलाल से फैले वसुधा में
उल्लास नया भरते सबके बैरी पतझड़ में।
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कई पतझड़ झेले,दूर खड़ा ठूंठ वृक्ष
अपनी नव पौध में देखता अपना अक़्स
सोच रहा हर बार पतझड़, बसंत नहीं लाता
चिर पतझड़ ओढ़े झांक रहा अपना अंतस।
अपर्णा शर्मा
March15th,24

*गोधूम-गेहूँ

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