पंच दिवसीय पर्व, घर-घर खोज रहा रौनक को
मार्ग तिराहे,चौक-चौबारे,लुभा रहे हर दिल को।
हर आँगन,सज रही, रंगों भरी रंगोली
नित-नई अल्पना,मनभावन खूब उकेरी।
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घर-आंगन में,चमक धमक की दिवाली आई
रात में रंग रंगीली लड़ीया बतिया खूब बनाई।
इनके मध्य, मस्ताना कंदील,बना है,कृष्ण कन्हैया
खील,बताशे,खांड-खिलौने देख मन हुआ ललचईया।
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आँगन बैठी, बूढी दादी, न जाने चुप क्यों बैठी है ?
सारी रौनक उड़ी यहाँ से,दूजे घर अब वो बसती है।
अपर्णा शर्मा
Nov.,10th,23

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