दहलीज

ऊषाकाल में,स्वागत हेतु जल छिड़काव से
आशा के चटक रंगों में सजी रंगोली से
चहुँ दिशा फैल जाता, शुभ संदेश दिवस का
ऐसे बता देती हैं दहलीज मिजाज घर का।
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दोपहर होते ही पसर जाती है उदासी की चादर
झूलती है,आशा निराशा के झोंके ले थकान के झूले पर
न जाने किस के आराम में पड़ी है खटिया इंतजार की
रौनक, बेरौनक खूब बयां हो रही, घर की दहलीज पर।

गोधूलि में गैया के लौटते ही,बछड़ो का रंभाना
घोंसलो में पंछियों का चहचहाते हुए लौटना
आशा का संचार मन मस्तिष्क को तृप्त करता हुआ
और चुपचाप एक दिया इंतजार का दहलीज पर रोशन करना।
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रात को दहलीज को इंतजार है किस्से कहानियों का
बालकों की हंसी ठिठोली में डूबी मस्तियों का
देखती है बंधन की डोर को मजबूत होते हुए
और मुस्कराकर,खुशी को छिपा बंद कर लेती हैं दर दहलीज का।
अपर्णा शर्मा
Sept.22nd,23

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