नटखट बचपन

प्रत्येक बालक राम,कृष्ण सा
जिए बालपन को बेफिक्र सा
नटखट बचपन खूब रिझाए
घर-आंगन में जब घूमे कृष्णा।

हर बाल गोपाल की लीला होती न्यारी
एक बालक ने अंगुठी बोदी जो थी क्यारी
रोज उसमें पानी देकर खूब निहारता
सोचता पेड़ उगेगा,अंगुठी लगेगी प्यारी प्यारी।
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एक दिन पिताजी ने एलान किया
सामान बाँधों, तबादला हुआ
सब अपना सामान लगे बाँधने
पर गोपाल हैरान परेशान हुआ।

जो अंगुठी बोई थी क्यारी में उसने
पेड़ नहीं निकला था अभी तक उसमें
फिर बातचीत से पता लगा था उसको
बीज़ दुबारा बो सकते हैं कहीं और पे।
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सब अपना सामान बाँधने में थे व्यस्त
भोला गोपाल क्यारी खोदने में हुआ पस्त
पर यह क्या हुआ, ना पेड़, ना बीज़ मिला
आया नए शहर में, मन था अस्त व्यस्त।

एक दिन उसने पिता को अपना हाल सुनाया
पिताजी ने फिर उसको बागवानी का गुण सिखाया
धीरे-धीरे वह सब भूल कर,बढ़ गया आगे
नटखट बचपन याद कर,आज फिर मुस्कुराया।
अपर्णा शर्मा
Sept.8th,23

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