मनभावन ऋतु

आह कैसी मनभावन ऋतु है आई
सावन के बरसने की ऋतु हैआई।

लगती कभी गर्म, कभी सुहानी
ऐसी हवा चली, मद-सी मतवाली।
पुरवा के संग में खूब इठलाती
कभी बिन हवा, स्वेद बढ़ाती।
आह कैसी मनभावन ऋतु है आई
सावन के बरसने की ऋतु हैआई।
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दमकती है धूप, कभी होती छांव
समझ न आते, कभी इसके दांव।
फूलाती सबके, हरदम हाथ पांव
लुका छुपी में बीतते ऐसे दिन रात।
आह कैसी मनभावन ऋतु है आई
सावन के बरसने की ऋतु हैआई।

घेवर, गुझियों से सजे बाजार
चूड़ी,मेहंदी से हरा भरा श्रृंगार।
झूला झूले और गाए गीत मल्हार
बेटी सखियों का मिलन त्योहार।
आह कैसी मनभावन ऋतु है आई
सावन के बरसने की ऋतु हैआई।
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शिव की स्तुति, गौरा का ताप
प्रेम,आस्था का अटूट विश्वास।
विरह कहे या कहे मधु_मास
बम बम भोले गूंजे हर श्वास।
आह कैसी मनभावन ऋतु है आई
सावन के बरसने की ऋतु हैआई।
अपर्णा  शर्मा
July 25th,25

हाथ नेह के

ये हाथ बढ़े हैं अनुराग से भरे हृदय के
ये हाथ बढ़े हैं स्नेह में डूबे नयनों के
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ये हाथ बढ़े हैं मेरे विश्वास से भरे नेह के
थाम  भी लो,न मुस्कराओ अब तुम दूर से।
अपर्णा शर्मा
July22nd,25

कुछ दर्द कभी नहीं मरते

चाहे अश्रु नयनों में हो सूखे
अंतर्मन के अन्तर भी हो सीले
चाहे शक्ति हो, दर्द सहने की
पर कुछ दर्द कभी नहीं मरते।
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मन में,दबा-छुपा कर रखे दर्द
जब तब बाहर झांका करते
कितना भी रोको,थामो इनको
पर कुछ दर्द कभी नहीं मरते।

पुरवा में जैसे हो सिहरे-सिहरे
घाव गहराते फिर से हरे-हरे
नियत तारीखों पर जीते हैं दर्द
कुछ ऐसे दर्द कभी नहीं मरते।
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अपनों के दूर चले जाने से 
जो आघात दिलों को दे जाते
हर दिन आते वो सपनों में अब
टूटे सपनों से अब हम डरते।
कुछ ऐसे दर्द कभी नहीं मरते।
अपर्णा शर्मा
July18th,25

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