दिलों में लेकर हज़ारों शिकायतें
और दिलों में भर कर स्याह अंधेरे।
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मना भी लिया ग़र, ये त्योहार रोशनी का
तो इतना बतादो कहां से लाओगे रौनके?
अपर्णा शर्मा
Oct.21st,25
रिश्तों में कुछ तो है
हैरान है आज शायर,कि रिश्तों में कुछ तो है,जो पिघलता है
बहुत कुछ बाकी है दरमियाँ उनके, कि वो नाराजगी को तरसता है।
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कोशिशे हज़ारों, हजार करली कि अब कोई वास्ता न रहे
बात,मुलाकात अब बेशक नहीं, पर रिश्तों में आज भी तरलता है।
अपर्णा शर्मा
Oct.14th,25
पतझड़
शरद ऋतु के आते ही, रंग बरसाते वृक्षों को देखा
धीमे-धीमे फिर मौसम का मिजाज बदलते देखा।
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पतझड़ तो मौसम का फेरा, फिर वृक्षों को हरे होते देखा
जिस घर आया पतझड़, उस घर को खण्डहर होते देखा।
अपर्णा शर्मा
Oct.7th,25
