संतुष्टि

जैसे कहे जिंदगी वैसे ही जिए जा रहे हैं सभी
वैसी नहीं है जिंदगी तो ऐसे ही जिए जा रहे सभी।
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क्यारियों में पौधे उगा कर,जो आनंद ले रहे थे कभी
वहीं गमलों में, प्रकृति को समेट कर,संतुष्ट हैं अभी।
अपर्णा शर्मा
Nov. 4th,2025

आँसू

आँसू भी रखते हैं,अपने और पराए की, बारीकी से परख।
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कहाँ रुकना है और कहाँ बह जाना है, तोड़ कर हर बाँध।
अपर्णा शर्मा
Oct.28th,25

रौनके

दिलों में लेकर हज़ारों शिकायतें
और दिलों में भर कर स्याह अंधेरे।
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मना भी लिया ग़र, ये त्योहार रोशनी का
तो इतना बतादो कहां से लाओगे रौनके?
अपर्णा शर्मा
Oct.21st,25

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