जब तलक, रखे था वो,अपना सादा मिजाज
छला जाता रहा,वो, हर वक़्त, हर एहसास।
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सीख लेता गर वो,ज़माने की जरा भी होशियारी
जिंदगी में आ जाता उसके सुकून भरा इत्मिनान।
अपर्णा शर्मा
Dec.23rd,25
मृत सपने
दिन में बेचैन से और रात में साकार से दिखते हैं जो सपने
नींद में जगाते और जागने पर जिद से अड़ जाते है जो सपने।
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यक से,ऐसा उलट फ़ेर, कर देती है ये अनिश्चितताओं से भरी ज़िन्दगी
मनुष्य को,मात्र का जीवित छोड़ कर,असमय मर जाते हैं ये सपने।
अपर्णा शर्मा
Dec.16th,25
साँझ का उत्सव
उठो, चलो, थोड़ा खुद के लिए भी जी जाओ
बाहर निकलो, थोड़ा रुबरु दुनिया से हो जाओ।
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जिम्मेदारी निभाते,निभाते, जीवन की साँझ आई
आओ,अब इस साँझ का उत्सव तुम मनाओ ।
अपर्णा शर्मा
Dec.9th,25
