जब वक़्त संग मेरे चलता रहा
मंद चाल सा वो संग चलता रहा
बेफिक्र, बेपरवाह रहा जिंदगी से
उसके आगोश में बेसुध ही रहा।
कभी जो वक़्त, बेवक्त ठहर गया
मानो जीवन बर्फ सा जम ही गया
जिंदगी के वो बेइंतहा भारी पल
तब वक़्त भी उन पलों में सहम गया।
https://ae-pal.com/
ये वक़्त कभी सरपट चाल चल गया
मैं जो रुक कर, थोड़ा सुस्ता जो गया
ये फिर से,संग में चला,बड़ी खुशामद से
इस तरह मुझे अपनी कीमत सिखा गया।
हैरान हो! मैंने पूछा,एकदिन वक़्त से
तू यूँ, हरक्षण, भागता है किस से
तू है कौन? बदलता है क्यूं हर पल
बोला,ये जो जिंदगी है,है सिर्फ वक़्त से।
अपर्णा शर्मा
Sept.12th,25
तृष्णा
तृष्णा ऐसी प्यारी थी
आज पर हुई भारी थी
हिमालय सब देख रहा
मानवता आज हारी थी।
प्रदूषण फैला चारों ओर
कंक्रीट का जंगल घनघोर
पतली सी धारा नदियों की
पर्यटक करते विकट शोर।
https://ae-pal.com/
यक से मौसम ऐसे बदला
मानव पल भर में ठिठका
काल उगलती नदिया देखी
उत्थान को यूँ मिटते देखा।
https://ae-pal.com/
पर्वतों में अब बादल फट रहे
मैदान ताल तलैइया बन रहे
अब तो कुछ समझ बढ़ाओ
हम अपनी ही हानि कर रहे।
स्वरचित:
अपर्णा शर्मा
Sept. 5th,25
अनकही
मंज़िल की तलाश में
अनजानी सी राह में
अवरोधों से बेफिक्र
चलते रहे ,साथ में।
https://ae-pal.com/
हाथ को लेकर हाथ में
डूबे एक से विचार में
हम बनकर हमसफर
मंजिल की तलाश में.
https://ae-pal.com/
दिखे नहीं किसी विवाद में
पड़े नहीं कभी तकरार में
बस साथ का लिए यकीं
आ गए आखिरी पड़ाव में।
अपर्णा शर्मा
August 29th, 25
