मामा के आगमन से, चूहूँ ओर है हर्ष की बेला
मायके का लाडला,आज मेहमान बना अलबेला।
भाइयों की हो रही द्वार पर अगवानी
मंगल गीतों के संग उतर रही आरती।
मामा के आते ही माँ को भूला दूल्हा
मामा मामा करते मामा पीछे डोला।
घुड़चढ़ी की पोशाक सब ही मामा लाया
जिसे पहन दूल्हा, मन ही मन इठलाया।
घोड़ी पर जब मामा ने दूल्हा बैठाया
गर्व से तन कर मामा भी थोड़ा इतराया।
नजर ना लगे राजा से दूल्हे को
रुपये लुटाता जा रहा वार फेर को।
बिन मामा,बिन भात,शादी लागे सुनी
प्रथम निमंत्रण बहना भाती को ही देती।
अपर्णा शर्मा
Nov.28th,25
(शादियों के मौसम में पुरानी रचना)

