रंगोली प्रकृति की

आसमाँ वसुधा हेतु, उद्यत देने को उपहार
सम्पूर्ण धवल पक्ष में, ले पाया यह आकार
साँझ होते ही धरा को थमा दिया चांदनी में लपेट
आसमाँ का धरा को अनुपम रंगोली का उपहार.

तारों संग विधु खेल रहा, धवल रंगोली धरती पर
श्याम रंग की चूनर ओढ़, रजनी भी मचले धरती पर
धरती का हर प्रेमी चाँद में ,अपने प्रेम को निरख रहा
न्यौछावर हुआ चंदा भी,सजीली धरती के अनुराग पर .
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धरती भी चंदा के अभिवादन को, आतुर हो रही
पूर्ण चाँद के स्वागत में सुरभित से परिपूर्ण हो रही
रात रानी, कुमुदिनी,चांदनी शतमुख से खिल गये
आसमाँ को, निरंतर इस रंगोली का धन्यवाद दे रही.

समंदर भी चाँद के अभिनंदन में पीछे कब रहा ?
हर तरंग, चांद के स्पर्श को निरंतर प्रयासरत रहा
प्रेम में डूबा समंदर,ज्वार में संदीपित सा
पूर्ण चाँद,धरती,और समंदर दुर्लभ दृश्य दिखा रहा.
अपर्णा शर्मा
Oct.17th,25

ज़िंदगी रुकती नहीं

यूँ तो बहुत दिनों से चल रही थी तैयारियां
समेट कर रख ली थी अपनी लकुटी कमरिया
धीरे धीरे उम्र का तकाजा बढ़ाती रही बीमारियाँ
जी ली थी,फिर से उसी में,सारी नासमझियां।
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वालदैन का अपने ही बच्चों को वालदैन बनाना
जैसे फिर से  बचपन पर आकर ठहर जाना
जी कर पूरी ज़िंदगी ज्यूं हो दुनिया का चक्कर
और एक सुबह चुपके से अलविदा कर जाना।
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रुके हुए सब जज़्बातों का बह जाना
यादों का कसकर दिल से जकड़ जाना
ज़िंदगी ऐसे ही चलती वो रुकती नहीं
धीरे से,वो वज़ूद अपने में समा जाना।
अपर्णा शर्मा
Oct.10th, 25

पतझड़

शरद ऋतु के आते ही, रंग बरसाते वृक्षों को देखा
धीमे-धीमे फिर मौसम का मिजाज बदलते देखा।
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पतझड़ तो मौसम का फेरा, फिर वृक्षों को हरे होते देखा
जिस घर आया पतझड़, उस घर को खण्डहर होते देखा।
अपर्णा शर्मा
Oct.7th,25

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