आज नाच दिखाती कठपुतली मुझसे यूँ कह रही थी
ठुमक ठुमक कर नाचती और वो गीत गा रही थी।
धागों के इशारों पर वो भाव भंगिमा बना रही थी
कभी आगे, कभी पीछे, वो इशारों पर थिरक रही थी
थिरकते हुए कठपुतली मुझसे यूँ कह रही थी
जिंदगी के धागे,किसी को न सौप,ऐसा कह रही थी।
आज नाच दिखाती कठपुतली मुझसे यूँ कह रही थी
ठुमक ठुमक कर नाचती और वो गीत गा रही थी।
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अपने धागे खुद समेट, न फंस किसी के चक्र में
ये केवल अबोध से धागे नहीं, तार है आत्मा के
नचाने वाला जब समेट लेता है इन धागों को
टूट कर मृत समान, निर्जीव हो जाती हूँ, कह रही थी
आत्मा का धागा टूटने से जीवन निष्क्रिय, ऐसा कह रही थी।
आज नाच दिखाती कठपुतली मुझसे यूँ कह रही थी
ठुमक ठुमक कर नाचती और वो गीत गा रही थी।
अपर्णा शर्मा
Nov. 7th,25
संतुष्टि
जैसे कहे जिंदगी वैसे ही जिए जा रहे हैं सभी
वैसी नहीं है जिंदगी तो ऐसे ही जिए जा रहे सभी।
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क्यारियों में पौधे उगा कर,जो आनंद ले रहे थे कभी
वहीं गमलों में, प्रकृति को समेट कर,संतुष्ट हैं अभी।
अपर्णा शर्मा
Nov. 4th,2025
रोक लो आँसू
ये ढुलकते आँसू ,बेकार न हो आँसू
मन की पीड़ा को,हल्का करे ये आँसू।
खुशियों में चार चाँद लगा,इतराते आँसू
दिल के एहसास बया कर ,बतियाते आँसू।
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पानी नहीं, ये अनमोल मोती है सच्चे
अर्थ ग़र समझे, हरपल के साथी है अच्छे।
व्यर्थ न बहाना, कुछ बचालो आँसू
कौन समझेगा यहाँ, रोक लो आँसू।
अपर्णा शर्मा
Oct. 31st,25
