मामा (शादियों के मौसम में )

मामा के आगमन से, चूहूँ ओर है हर्ष की बेला
मायके का लाडला,आज मेहमान बना अलबेला।

भाइयों की हो रही द्वार पर अगवानी
मंगल गीतों के संग उतर रही आरती।

मामा के आते ही माँ को भूला दूल्हा
मामा मामा करते मामा पीछे डोला।

घुड़चढ़ी की पोशाक सब ही मामा लाया
जिसे पहन दूल्हा, मन ही मन इठलाया।

घोड़ी पर जब मामा ने दूल्हा बैठाया
गर्व से तन कर मामा भी थोड़ा इतराया।

नजर ना लगे राजा से दूल्हे को
रुपये लुटाता जा रहा वार फेर को।

बिन मामा,बिन भात,शादी लागे सुनी
प्रथम निमंत्रण बहना भाती को ही देती।
अपर्णा शर्मा
Nov.28th,25
(शादियों के मौसम में पुरानी रचना)

बचपन

कभी सोचता हूँ कि सबसे खूबसूरत पड़ाव है बचपन
हर सन्तान के लिए सबसे खूबसूरत आशिर्वाद है बचपन
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उम्र के किसी भी चरण में जब थक जाती है जिंदगी
खुल कर फिर हँसाता है,वहीं दिल में छुपा हुआ बचपन।
अपर्णा शर्मा
Nov.25th, 25

जब दोस्त

जब दोस्त को सिर्फ दोष दिखने लगे
समझो दोस्ती का सूरज अस्त होने लगा है।

जब दोस्त आरोप,रोपित करने लगे
समझो दोस्ती का पौधा अब सूखने लगा है।
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जब दोस्त समझदारी की आशा करने लगे
समझो औपचारिकता का सोपान आने लगा है।

जब दोस्त दूसरे दोस्तों से तुलना करने लगे
समझो दोस्ती की रंगोली से और आँगन सजने लगा है।
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जब दोस्त दिल की जगह दिमाग में छाने लगे
समझो दोस्ती अब राहत नहीं, अनचाहा बोझा लगने लगा है।

जब दोस्त के हर नजरअंदाज को समझने लगे
समझो दोस्ती के जहाज में आखिरी कील लगने लगी है।

जब दोस्ती में ऐसी कोई भी,गलतफहमी दिखने लगे 

समझो दोस्ती को फिर से धूप पानी लगाने की मुद्दत आने लगी है।
अपर्णा शर्मा
Nov. 21st,25

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