जब दोस्त

जब दोस्त को सिर्फ दोष दिखने लगे
समझो दोस्ती का सूरज अस्त होने लगा है।

जब दोस्त आरोप,रोपित करने लगे
समझो दोस्ती का पौधा अब सूखने लगा है।
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जब दोस्त समझदारी की आशा करने लगे
समझो औपचारिकता का सोपान आने लगा है।

जब दोस्त दूसरे दोस्तों से तुलना करने लगे
समझो दोस्ती की रंगोली से और आँगन सजने लगा है।
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जब दोस्त दिल की जगह दिमाग में छाने लगे
समझो दोस्ती अब राहत नहीं, अनचाहा बोझा लगने लगा है।

जब दोस्त के हर नजरअंदाज को समझने लगे
समझो दोस्ती के जहाज में आखिरी कील लगने लगी है।

जब दोस्ती में ऐसी कोई भी,गलतफहमी दिखने लगे 

समझो दोस्ती को फिर से धूप पानी लगाने की मुद्दत आने लगी है।
अपर्णा शर्मा
Nov. 21st,25

आस

काश में जो छिपी रहती है थोड़ी सी आस
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वहीं बार बार जगाती है जीवन में विश्वास।
अपर्णा शर्मा
Nov.18th,25

सपनों का खाता

बचपन में एक सपनों का खाता खोला
जिसमें एक-एक कर सपनों को जोड़ा।
कुछ सपनों की आवृति जमा करी थी
कुछ सपनों का संचित खाता भी खोला।

सपनों को जमा करना भी एक सपना था
एक-एक को मेहनत से रखना अपना सा था
कुछ सपने जिम्मेदारी का सुखद एहसास भरे
कोई एक दो सपना वज़ूद से बढ़कर रखा था।
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अचानक से सपनों के बैंक से संदेश आया
खाता बंद होने की धमकी का फरमान सुनाया
सपनों की किताब लेकर ,मैं झटपट हाजिर था
बैंक लिपिक ने फिर मुझे कुछ यूँ समझाया।

गर तुम ऐसे ही, केवल सपने जमा करते जाओगे
सपन-निकासी का न कोई उपाय अपनाओगे
फिर सपनों का खाता बंद करना होगा मजबूरीवश
मरते सपनों का अंत तुम अपनी आँखों से देखोगे।
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यह सब सुन कर, मैं थोड़ा सा घबराया
सारी उम्र को बस जोड़ने में ही बिसराया
अब मैं कुछ सपनों संग,जीना सीख रहा
और जीवन को सपनों के रंगों से सजाया।
अपर्णा शर्मा
Nov. 14th,25

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