ताऊ जी (शादियों के मौसम में)

शादी में ताऊजी की जब होती है अगुवाई
आते ही, उन्होंने पिताजी की जिम्मेदारी घटाई।

समस्त कार्यो का करते हैं बेहद सूक्ष्म निरीक्षण
बहुत जाँच,परख के बाद ही, होता सफल परीक्षण।

प्रत्येक रीति,रिवाज में रखते हैं  वो अपनी दखल
बिना अनुमति,असंभव होती कोई भी नई पहल।
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निश्चित समय पर, प्रत्येक कार्य का लेते हैं जिम्मा
बाराती सोचे,मस्ती के वास्ते हो जाए कोई करिश्मा।

बारात में नाचने की मस्ती को हर संभव रोके
आगे बढ़ो,बार-बार बारातियों को यहीं टोके।

द्वार पर नाचना, अभी मत थको
बैंड से कहते, तुम जरा आगे बढ़ो।

द्वार पर भी कभी ना नाचने देते ताऊजी
भोजन करो, क्या नाचते ही रहोगे बेटाजी।
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इस तरह निश्चित समय पर होते सब काम
ताऊ जी होते संतुष्ट और बाराती बेहद उदास।

गर ताऊजी न हो घरों की शादियों में
बारात नाचती रह जाए, गालियों में।
अपर्णा शर्मा
Dec.12th,25

एक ख़्याल

रिश्तों की चादर पर मोहब्बत के बेल बूटों को काढ़ लिया करों ।

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ख़ुशहाल मुस्तकबिल के लिए यादों का बक्सा भर लिया करों ।

अपर्णा शर्मा

16th May 23

मैं और मेरा अंतर्मन

एक दिन बातों बातों में ,
मैं कह बैठी कि मैं तो सच ही बोलती हूँ ।
और तुम?
वो बोला, तुम से सच,पर झूठ भी बोलता हूँ ।
मैं फिर बोली,झूठ नहीं बोला करते यह गलत है ।
‘कुछ सही गलत नहीं,सब समय के अनुरूप है’ वो मुस्कराया।
मुझे उसकी बात थोड़ी जची ।अपने पे हँसी ।

अपनी कहीं बातों से हो गया दूध का दूध ,पानी का पानी।

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माँ ने पूछा,जब कभी। कैसी हो?
जवाब होता बहुत अच्छी।

पिता पूछते कि कोई परेशानी?
मैंने कहा, ना

भाई ने पूछा,मेरी याद आयी ?
जवाब था, क्यों आएगी ?

बहन का कभी यह कह देना
हमारा साथ कैसा बढ़िया था।
मेरा जवाब होता, हाँ बढ़िया था,पर अब याद नहीं।

दोस्तों ने पूछा, हमारे साथ की गई मस्ती ।
पूरा दिन की धमाचौकड़ी जिससे हैरान थी बस्ती।
अरे!वो पागलपन के दिन ।
कौन याद रखेगा वो पलछिन ।

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इसी तरह ना जाने कितने झूठ बोलती हूँ।
फिर भी मुस्करा कर कहती हूँ कि मैं सच बोलती हूँ।

अभी भी मैं हूँ ,ज्यादा सच्ची पर थोड़ी सी झूठी।

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