रुद्राणी

भोर की अंगडाई संग,करती दिवस का प्रारम्भ.
हथेलियों में ईश दर्शनऔर करती धरा को प्रणाम।

व्रत-उपवास, नियमित पूजा से सदा रहती परे.
मंत्र,जप,108 नामवाला भी दूर रहते हैं खड़े।

चकरघन्नी बन गृह की,सबकी मनोवृति पहचानती.
वृद्ध जनों के मुख पर शांति देख अर्चना हो जाती।
https://ae-pal.com/
वृद्धों से स्नेह कर उनको मुस्कान दे जाती.
घर की सहायिका की पीढ़ा में कन्धा बन जाती।

छोटी बच्चियों में निडरता, आत्म विश्वास भर जाती.
दृढ़ नास्तिक,माँ के मंदिर में अनुपस्थित हो जाती।

हैरान करती वो,बिन पूजा कैसे मनोहर जीवन बिताती?
जीवन को तपा स्वयं ऐसी नारी स्वयं रुद्राणी कहलाती।
अपर्णा शर्मा
Sept. 26th,25

बुत सा जीवन

जीवन अपनों की परवाह में अपना न रहा
अपनों के लिए,अपने को खोता चला गया।

सभी का ख़्याल उसे हर वक़्त ही रहा
उनके ख़्याल में अपना ख़्याल खोता गया।
https://ae-pal.com/
सभी को परिवार में साथ रहने के गुण सिखा
न जाने क्यों वो खुद अकेला, तन्हा हो गया।

अपने शौक़ भुला,सभी के शौक रखे जिंदा
अपने जीने के ढंग छोड़,अब शोक में खो गया।

सभी की दिनचर्या को रफ्तार दे कर 
उसका जीवन बुत सा स्थिर हो गया।
https://ae-pal.com/
ताउम्र फिक्र उसे रहीं,सभी के समुचित विस्तार की
और अपने को इस तरह संकुचित करता गया।

जो उम्र भर सभी को हर तरह से संभालता रहा
वो उम्र के इस पड़ाव पर हर किसी पर निर्भर हो गया।
अपर्णा शर्मा
Sept.21st,25
(अल्जाईमर दिवस पर )

वक़्त के संग

जब वक़्त संग मेरे चलता रहा
मंद चाल सा वो संग चलता रहा
बेफिक्र, बेपरवाह रहा जिंदगी से
उसके आगोश में बेसुध ही  रहा।

कभी जो वक़्त, बेवक्त ठहर गया
मानो जीवन बर्फ सा जम ही गया 
जिंदगी के वो बेइंतहा भारी पल
तब वक़्त भी उन पलों में सहम गया।
https://ae-pal.com/
ये वक़्त  कभी सरपट चाल चल गया
मैं जो रुक कर, थोड़ा सुस्ता जो गया
ये फिर से,संग में चला,बड़ी खुशामद से
इस तरह मुझे अपनी कीमत सिखा गया।

हैरान हो! मैंने पूछा,एकदिन वक़्त से
तू यूँ, हरक्षण, भागता है किस से
तू है कौन? बदलता है क्यूं हर पल
बोला,ये जो जिंदगी है,है सिर्फ वक़्त से।
अपर्णा शर्मा
Sept.12th,25

Blog at WordPress.com.

Up ↑