जीवन के खुले मैदान में
सांसो का अजब सा खेला है।
जिसने सांसो को बाँध लिया
उसने ही खेल को जीता है।
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आती जाती इन सांसो में ही
जीवन का मधुर संगीत बसा.
जिसकी सांसे साथ छोड़ चली
उस घर फिर उल्लास कहाँ दिखा?
सांसों की कीमत वो जाने
जिनके अपने बिछुड़ गए।
अपनी सांसे हरपल बोझ लगे
बिछड़े की साँस पर विचार करे।
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जीवन है धागे सा
जो तकली सा नाच नचाए।
सांस के तानेबाने से
जीवन हरपल बुनता जाए।
स्वरचित:
अपर्णा शर्मा
2nd June 23
विनम्रता झुकना सिखाती है।
शैशवावस्था में रोपित गुण का बीज़
अनुकूलन मिलते ही होता अवश्य अंकुरित
समय और मौसम के ये सभी परिवर्तन
निश्चित काल समय में होते निश्चित पल्लवित।
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ऐसे ही विनम्रता सद्गुण वृक्ष का बीज़ आधार
अवगुणों से सदा दूर करें जो बारम्बार
विनम्र वृक्ष का झुकना ही रहा सदा परिणाम
अहंकार छोड़,सब समान है की करता मनुहार।
विनम्रता का परिवर्तन बनता जाता वट समान
हर इच्छित को मिलता विकलता से तुरत निर्वाण
झुकना स्वभाव में जब आता,आते गुण निकट
गुणी को सर्वगुणी बना हरता सभी कपट।
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विनम्रता सदा रहा मानव का श्रेष्ठ गुण
संदेह नहीं, दूर करे ये सारे ही अवगुण
अति झुको पर,इतना सा सदा रहे विचार
याचक से दृष्टित न हो विनम्रता के आचार।
अपर्णा शर्मा
26 May 23
मुखौटे
इक मासूम चेहरा ईश्वर प्रदत
उसपर सजे मुखौटे अनगिनत।
कभी सत्य का, कभी असत्य का
कभी प्रेम का और कभी छल का।
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जब जिस मुखौटे से काम निकले.
वहीं मुखौटा ठाठ से मुख पे चमके।
यदि दुनिया परिचित हुई,इस कला की
विषादिता ही सिर्फ मित्र है ऐसे इंसान की।
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स्वयं सदा वास्तविक रूप में ही रहिए
मुखौटावानों को पहचानते ही सतर्क होइए।
अपर्णा शर्मा
19th May 23
