मानवता

इतनी शर्मनाक घटना की कलम भी मौन है
शुतुरमुर्ग से गर्दन छिपाए सोचते हम कौन है?

मानव क्या? जानवर तक कहलाने के लायक नहीं
कभी अस्मिता लूटते और मूत्रविसर्जन करते कहीं ।
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किस मुँह से कहें आज, यहाँ हर नारी में माँ है बसती
हर छह माह के बाद,देश में कन्या देवी सी है पूजती।

बेटी होने पर,आशंकित बाप,क्या जश्न मनाएगा ?
और हुआ निर्बल तो हर हाल में कुचला जाएगा।
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शिक्षा ही मात्र हथियार हैं जो सम्मान सिखाती है
एक समान की सोच ही,हर घर मानवता लाती है।

दिल उदास है और नस नस में रोष ही रोष भरा है
ऐसी कुत्सित मानसिकता पर देश शर्म से गड़ा है।
अपर्णा शर्मा
July 21st, 23

बाल गीत (सावन आया)

नन्हे नन्हें बदरा,आसमान में खेल रहे .
लुका छिपी करते करते, हरदम वो दौड़ रहे।

हवा उनको पकड़े कैसे? बदरा आगे आगे भाग रहे
थक कर बैठी जब हवा उसका दम भी घोंट रहे।
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सूरज ने ताप बढ़ाकर, बादल पर रौब जमाया
इस सबमें धरती को भी अग्नि जैसा खूब जलाया।

धरती को जलता देख,आसमान ना सह पाया
उसने झुक कर बादल को फिर अपने पास बुलाया।
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नन्हे नन्हे मोती जैसे, बादल ने जल बरसाया
हर्ष से झूम उठी धरती, देखो देखो सावन आया।
अपर्णा शर्मा
July 10th, 23

पुरवा

पुरवा बहे मंद मंद, जी होए अधीर
सुध-बुध खोए के,पाऊँ न कोए तीर।

मौन सी विस्मृति के झोंके,भान कराए पुरवइया का
सावन में बावरा मन, यहाँ वहाँ डोले हिंडोले सा।
पुरवा बहें मंद-मंद……
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इन मीठी यादों के बीजों से,नमी है छाए हल्की हल्की।
आमोद-प्रमोद की हरियाली में चूहूँ ओर छाए आस की बदरी।
पुरवा बहें मंद-मंद…..

इस पुरवा के खिले मौसम में,फल भी आए नीम नींबोरी।
प्रेम के बदरा बरस बरस जाए,प्रीत की बारिश रहे सदा अधूरी।
पुरवा बहे मंद-मंद….
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ताप बढ़े जब-जब यादों का,अन्तर मन पसीज सा जाए।
सब खेल है ये ,ऋतु पावस का,याद में नैन भर-भर आए।
पुरवा बहे मंद-मंद
अपर्णा शर्मा
July 7th, 23



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